-अवनीश यादव-
बिल्हौर में एक प्रशासनिक अधिकारी ने अपने मुंहलगे एक दैनिक समाचार पत्र के संवाददाता को मोबाइल गिफ्ट किया। चूंकि एक दूसरे राष्ट्रीय अखबार के संवाददाता का कथित चेला भी उस समय उसके साथ था सो उसने भी दांव मार दिया। लेकिन आए दिन विवादों से घिरे रहने वाले उक्त अधिकारी द्वारा मोबाइल गिफ्ट किए जाने की खबर जब दूसरे अखबार के पत्रकारों को मिली तो उनका पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया। और जब उनसे बर्दाश्त नहीं हुआ तो वह भी उक्त अधिकारी के पास पहुंच गए और अपना हक मांगने लगे। अधिकारी भी बेचारे क्या करते मजबूरन ही सही उन्हें भी खुश कर दिया। लेकिन बात यहीं पर खत्म नहीं हुई। बात तो यहीं से शुरु हुई। अब दूसरे अखबारों के वह पत्रकार खार खाए हुए हैं जिन्हे मोबाइल नहीं मिल पाया है वह सोंच रहे हैं कि मौका मिले जब अफसर के कपड़े फाड़े जाएं। हालांकि पत्रकार साथी लोग यह भी अच्छी तरह से जानते हैं कि उक्त अधिकारी की शासन में अच्छी पकड़ है। लेकिन वह अपनी आदत से बाज नहीं आ रहे हैं। साथ ही इन पत्रकारों की उन पत्रकारों से भी खुन्नस हो गई है जो मोबाइल गिफ्ट पी गए हैं। लेकिन शायद उनका हाजमा ठीक नहीं था इसलिए हजम नहीं कर पाए। पाठकों मैं आपको यह बताने के लिए यह लेख लिख रहा हूं कि बिल्हौर की पत्रकारिता के इतिहास में मेरी जानकारी में यह पहला वाकया है जिसमें इतने बड़े अधिकारी ने पत्रकारों को खुश करने के लिए मोबाइल गिफ्ट किए हों और इसके कारण पत्रकारों में ही पालेबाजी हो गई हो। कई पत्रकारों ने तो एक-दूसरे से बोलना तक बंद कर दिया है। मैंने भी बिल्हौर (कानपुर) में राष्टीय अखबार अमर उजाला में करीब एक दशक तक काम किया है, लेकिन उस दौर में पत्रकारों और अधिकारियों की इस तरह की टुच्चई से कभी साबका नहीं पड़ा। मेरा कहने का मतलब इतना भर है कि पत्रकार मित्रों इन छोटे-छोटे उपहारों के लिए कम से कम अपनी इज्जत का जनाजा न निकालो और अगर ईमान फिर भी साथ न दे तो कम से कम आपस में लड़ो तो न....।(समाचार मोबाइल गिफ्ट में पाने वाले एक पत्रकार से बातचीत पर आधारित)
Monday, September 7, 2009
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